कृषि कानूनों की वापसी विपक्ष की जीत नहीं, किसानों की हार
उज्जैन। हुड़दंग के आरोप में निलंबित सांसदों के धरने पर बैठे रहने की जिद के बाद भी राज्यसभा में कामकाज चल निकलना यही बताता है कि ये सांसद एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। विपक्षी दल इन सांसदों का साथ देकर न केवल अपना नुकसान कर रहे हैं, बल्कि सदन में अपनी बात कहने के अपने अधिकार का खुद ही हनन कर रहे हैं। आखिर जब यह साबित हो चुका है कि इन सांसदों ने राज्यसभा में हुड़दंग मचाकर संसद की गरिमा को आघात पहुंचाया, तब फिर समझदारी इसी में है कि वे अपनी गलती मानकर आगे बढ़े। यदि वे अपनी गलती मानकर आगे बढ़े, यदि वे माफी मांगने के लिए तैयार नही ंतो कम से कम अपने अपने अशोभनीय आचरण के लिए तैयार नही ंतो कम से कम अपने अशोभनीय आचरण के लिए खेद तो प्रकट कर सकते हैं। उक्त बात इंदिरा नगर युवा विकास समिति के अध्यक्ष मंगेश श्रीवास्तव ने कही। मंगेश श्रीवास्तव ने कहा कि कांग्रेस पार्टी आज इस हद तक सत्ता के लालच में गिर सकती है कि भोले भाले किसानों के साथ ही आम नागरिकों के खून पसीने की कमाई एवं टैक्सपेयरों का पैसा जो संसद चलने में लाखों रूपया खर्च हो जाता है, आम जनता सांसदों को चुनकर संसद भवन पहुंचाती है अपनी बात रखने के लिए लेकिन यही सांसद जनता की बात नहीं रखते हुए केवल अपनेपन पर आकर संसद को नहीं चलने देते और कहते हैं कि हम माफी नहीं मांगेगे तो जनता इन सांसदों को आने वाले चुनाव में सबक सिखायेगी। निलंबित सांसदों की पैरवी कर रहे विपक्षी दलों को जितनी जल्दी यह समझ में आए उतना ही बेहतर है कि वे न केवल संसद की मर्यादा भंग करने वाली शर्मनाक हरकत का बचाव कर रहे हैं बल्कि यह भी जाहिर कर रहे हैं कि राष्ट्रीय मामलों पर चर्चा में उनकी दिलचस्पी नहीं। वास्तव में यह रवैया एक बड़ी बीमारी का लक्षण है। एक बर्से से विपक्षी ने हर मसले पर सरकार का विरोध करने की ठान रखी है, इसके चलते अ बवह सरकार के शासन करने के अधिकार पर ही आघात करने लगा है। कोई भी विधेयक हो, आमतौर पर विपक्ष की यही दलील होती है कि वह उसे स्वीकार नहीं। ऐसा लगता है कि विपक्ष यह भूल ही गया है कि उसका काम केवल विरोध करना ही नहीं बल्कि सुझाव देना भी होता है। वह इसके लिए शायद ही कभी कोशिश करता हो कि उसके सुझाव सरकारी फैसलों और विधेयकों का हिस्सा बनें। वह इसी कोशिश में रहता है कि न तो कोई विधेयक पारित हो और न ही सरकार कोई फैसला ले। यह सही है कि संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन आखिर विपक्ष के अड़ियल और असहयोग भरे रवैये के रहते कोई भी सरकार सदन और यहां तक की शासन कैसे चला सकती है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि विपक्ष तर्क के जवाब में कुतर्क पेश करने लगा है। इतना ही नहीं वह कुतर्क के साथ दुष्प्रचार का भी सहारा लेता है। कृषि कानूनों के मामले में उसने ठीक यही किया। ऐसा करके उसने देश के 86 प्रतिशत छोटे और मझोले किसानों के हितों की बलि ही ली। इन कानूनों की वापसी विपक्ष की जीत नहीं, उन किसानों की हार है जिनका वह हितैषी होने का दावा करता है। यह अच्छा हुआ कि राज्यसभा सभापति निलंबित सांसदों को बहाल करने को विपक्ष की बेजा मांग के आगे नहीं झुका। इन सांसदों के व्यवहार की अनदेखी करने का मतलब होगा, संसद में हुड़दंग को बढ़ावा देना।