नाटक ने दिखाई आजादी के वक्त सिंधी समाज की पीड़ा, सिंधी नाटक ने कसा सामाजिक व्यवस्थाओं पर व्यंग्य

 उज्जैन में समृद्ध होता सिंधी थिएटर, भोपाल व उज्जैन के कलाकारों ने किया नाट्य मंचन सिंधी साहित्य अकादमी द्वारा सिंधी नाटक समारोह संपन्न



उज्जैन। सिंधी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा कालिदास अकादमी में नाट्य समारोह का आयोजन किया जिसमें वारीअ सन्दो कोटु सिंधु दर्पण भोपाल एवं अंधेर नगरी चरबटु राजा सिंधू प्रवाह अकादमी उज्जैन द्वारा नाटक का मंचन किया गया। समाज के मीडिया प्रभारी दीपक राजवानी ने बताया कि इस समारोह का स्थानीय संयोजन सिंधू जाग्रत समाज एवं भारतीय सिन्धू महासभा द्वारा किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा सिंधी साहित्य अकादमी के निदेशक राजेश कुमार वाधवानी ने की। प्रथम प्रस्तुति के रूप में सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक कविता इसरानी के निर्देशन में वारीअ संदो कोटु का मंचन किया गया। 1947 में भारत की आजादी के वक्त सिंधी समाज की पीड़ा को दर्शाते नाटक को कलाकारों ने मंच पर जीवंत कर दिया। नाटक में भाग लेने वाले कलाकार



 कविता ईसराणी, नारी लच्छवाणी, सुरेश पारवाणी, भारती ठकुर, तन्मय वासवाणी, पिंकी लालवाणी, परसो नाथाणी, राकेश शेवाणी, कैलाश वासवाणी, शुभम नाथाणी, मनोहर लालवाणी, धीरज पारवाणी, रोहित नाथाणी, समीक्षा लच्छवाणी, दक्ष लालवाणी, मनन रामचंदाणी, दिक्षिता पारवाणी रहे। गीत साईं कंवरराम, केएल सहगल, मंजूश्री आसूदाणी, कामिनी केवलाणी, अर्पित लालवाणी एवं नारी लच्छवाणी, साउण्ड/लाईट मुकेश जिज्ञासी ने दिया, लेखक लख्मी खिलाणी थे। द्वितीय प्रस्तुति के रूप मे वरिष्ठ नाट्य निर्देशक कुमार किशन के निर्देशन में अंधेर नगरी चरबटु राजा का मंचन किया गया। भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित सामाजिक व्यवस्थाओं पर व्यंग कसता हास्य से भरपूर यह नाटक पूरे समय दर्शकों को हंसाता रहा तथा अपनी अमिट छाप छोड़ गया। इस नाटक का अनुवाद भगवान बाबानी एवं संगीत गुरमुख वासवानी, पार्श्व संगीत भूषण जैन द्वारा किया गया। नाटक को सुंदर नृत्य कोरियोग्राफी के माध्यम से डॉ पल्लवी किशन ने और भी गति प्रदान की जिसे दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया। नाटक में किरदार करने वाले कलाकार विजय भागचंदानी, सिद्धार्थ भागचंदानी, लोकेश भागचंदानी, गिरीश परसवानी, शांतनु भागचंदानी, मिनी सुखवानी, प्रकाश देशमुख, गजेंद्र नागर, रोहित सामदानी, अमरलाल तोलानी, सूर्यदेव ओल्हन एवं डॉ पल्लवी किशन व कुमार किशन थे। नृत्य समूह में ईशा व्यास, जयवी व्यास, साक्षी चांद्रायण, पहल उपाध्याय, अमूल्या जैन, तकनीकी सहयोग दीपेश बॉल एवं हरिओम मेहता का था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में समाजसेवी महेश पर्यानी, अध्यक्ष दौलत खेमचंदानी, राजेश वाधवानी निदेशक सिन्धी साहित्य अकादमी भोपाल, डॉ संतोष पंण्डया निदेशक कालिदास अकादमी, वासु केसवानी वरिष्ठ भाजपा नेता एवं अन्य मंचासीन समाज प्रमुख गोपाल बलवानी, रमेश राजपाल, तीरथदास रामलानी, प्रताप रोहिरा, सुनील खत्री अतिथियों का स्वागत राजकुमार परसवानी, दीपक राजवानी, मुकेश शेवारामानी, तुलसी राजवानी, जीतू सेठिया, किशन भाटिया, सुरेश सनमुखानी, नीलम मखीजानी, स्वाति गजरानी, भारतीय सनमुखानी मौजूद रहे। इस अवसर पर राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित समाजसेवी संतोष लालवानी, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक कविता इसरानी व कुमार किशन का विशेष सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन रमेश गजरानी ने किया एवं आभार महेश गंगवानी ने माना। कथासार नाटक वारीअ संदो कोटु 1947 में भारत की आजादी के वक़्त सिंधी समाज की विभाजन की पीड़ा को दर्शाता है नाटक वारीय संदो कोट। अविभाजित हिंदुस्तान का हिस्सा बने सिंधी समाज को धर्म की रक्षा के लिए अपनी जमीन जायदाद, घर सब कुछ कुर्बान करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने संघर्ष कर अपना अस्तित्व कायम किया। लंबे संघर्ष के बाद समाज की मुख्य धारा से जुड़ कर वो आज परमार्थी समाज के रूप में जाने जाते है। पर जीवन और अस्तित्व को कायम रखने में समाज को जो नुकसान हुआ वो था संस्कृति और भाषा से नई पीढ़ी का दूर होना। वारीय संदो कोट एक परिवार की कहानी है जिसके मुखिया कुन्दनदास और उनका बेटा नारूमल संघर्ष कर किसी तरह परिवार को संभालते है पर ऐसे में वो अपने पोते लालू को खो देते है। सिंधी समाज के संघर्ष और सफलता की कहानी का बेहद मार्मिक चित्रण नाटक के माध्यम से किया गया और संदेश दिया गया कि किसी भी कौम की पहचान उसके भाषा संस्कृति और संस्कारो से होती है। नाटक के कई दृश्यों में दर्शक अपने आंसू नही रोक सके। कलाकारों के सशक्त अभिनय ने कई दृश्यों में दर्शकों को महसूस करवाया की ये तो उनकी अपनी ही कहानी है। नाटक के लेखक लख्मी खिलानी एवं निर्देशन कविता इसरानी का रहा।
कथासार नाटक अंधेर नगरी चरबटु राजा एक अनजान नगर में एक संत और उसके दो चेले प्रवेश करते हैं संत को जब यह पता लगता है कि यहां हर वस्तु की कीमत एक जैसी है तथा यहां का राजा मूर्ख है उसे अच्छे बुरे सच- झूठ ,उच्च- नीच का ज्ञान नहीं है तो वह उस नगर को छोड़ कर चले जाते हैं, किंतु संत का एक लालची चेला गोरधनदास जिद करके वहीं रुक जाता है। नगर में एक बनिए की दीवार गिर जाने से किसी बूढ़ी औरत की बकरी दबकर मर जाती है बुढ़िया न्याय के लिए राजा से गुहार करती है राजा दीवार के मालिक कल्लू बनिए से लेकर कारीगर, चूना बनाने वाला, भिश्ती मसक बनाने वाला, कसाई, भेड़ बेचने वाला और अंत में शहर की सुरक्षा कर रहे कोतवाल को दरबार में बुलाया जाता है और अंततः बकरी के दबकर मर जाने के अपराध में कोतवाल को फांसी का हुक्म दिया जाता है। फांसी का फंदा बड़ा बन जाने से राजा की हुक्म से कोतवाल की जगह किसी मोटे व्यक्ति को फांसी के लिए लाया जाता है महंत का  गोवर्धन दास जो की मोटा है पकड़ाई में आता है सिपाही उसे घसीट कर ले जाते हैं। महंत को जब यह पता चलता है कि तो वह चेले को बचाने के खातिर राजा को मूर्ख बनाकर फांसी पर चढ़ने के लिए प्रेरित करता है और अंततः राजा स्वयं फांसी पर चढ़ जाता है। इस तरह अंधेर नगरी चौपट राजा खत्म होता है ऐतिहासिक एवं सफल कार्यक्रम के लिए समाज एवं हिंदी साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद भोपाल का आभार सभी सिंधी समाज जनों ने माना।
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